केईएम अस्पताल की लापरवाही से वंचित हुआ मरीज, नेहा विजय देसाई ने उठाई आवाज

केईएम अस्पताल की लापरवाही से वंचित हुआ मरीज, नेहा विजय देसाई ने उठाई आवाज

मुंबई।
देश की प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संस्थाओं में शुमार केईएम अस्पताल एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार कारण कुछ चिंताजनक है। एक गंभीर बाल रोगी को केंद्र सरकार की ‘उत्कृष्टता केंद्र’ योजना के अंतर्गत मिलने वाली 50 लाख रुपये तक की चिकित्सा सहायता से केवल प्रशासनिक लापरवाही के कारण वंचित होना पड़ा है।

इस अत्यंत संवेदनशील मामले में सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री नेहा विजय देसाई ने मुखरता से आवाज उठाई है और इस मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डा तथा केंद्रीय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), आयुष मंत्रालय, श्री प्रतापराव जाधव के समक्ष गंभीरता से प्रस्तुत किया है।

नेहा देसाई द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि केंद्र सरकार की नीति के तहत केईएम अस्पताल को विशिष्ट रोगों के उपचार हेतु जरूरतमंद मरीजों का नामांकन कर 25 लाख से 50 लाख रुपये तक की सहायता दिलाने का प्रावधान है। परंतु एक गंभीर बीमारी से ग्रसित बाल रोगी पारस के परिवार द्वारा बार-बार अस्पताल प्रशासन से संपर्क करने के बावजूद, आवश्यक चिकित्सा परीक्षणों को समय पर नहीं किया गया।

“पारस के माता-पिता ने हर नियमानुसार प्रयास किया, लेकिन अंतिम एवं अनिवार्य परीक्षण अस्पताल की लापरवाही के कारण आज तक लंबित है,” नेहा देसाई ने बताया।

ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया गया है कि राज्य और केंद्र सरकार के कई अधिकारियों को इस मामले की जानकारी दी गई, किंतु किसी भी स्तर पर संतोषजनक कार्रवाई नहीं की गई। केवल अनिश्चित और अस्पष्ट उत्तरों के माध्यम से पीड़ित परिवार को भ्रमित किया गया।

नेहा देसाई ने पत्र में यह मांग रखी है कि इस मामले में तत्काल उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए, अस्पताल प्रशासन पर जिम्मेदारी तय की जाए, और पीड़ित बालक पारस का नामांकन शीघ्र पूरा कराकर उसे केंद्र सरकार की योजना के अंतर्गत सहायता राशि प्रदान की जाए।

उन्होंने इस मामले को नागरिक अधिकारों के उल्लंघन और स्वास्थ्य सेवाओं में संस्थागत लापरवाही का प्रत्यक्ष उदाहरण बताते हुए कहा कि, “यह मामला केवल एक बालक की जिंदगी का नहीं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य तंत्र की जवाबदेही का भी है।”

यह ज्ञापन अब न केवल केईएम अस्पताल की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है, बल्कि केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की जमीनी स्तर पर निष्पादन की वास्तविकता को भी उजागर करता है।

अब देखना यह है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और आयुष मंत्रालय इस मामले पर कितनी तत्परता से संज्ञान लेते हैं और पीड़ित बालक को न्याय दिलाने की दिशा में क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।

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